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== [https://trendingtadka.com/pitrapaksh/ '''पितृपक्ष: हिन्दू धर्म में महत्व, गया की पवित्रता, और वैदिक संदर्भ'''] ==
आश्विन कृष्ण प्रतिपदा से लेकर अमावस्या पंद्रह दिन '''पितृपक्ष''' (पितृ = पिता) के नाम से विख्यात है। इन पंद्रह दिनों में लोग अपने पितरों (पूर्वजों) को जल देते हैं तथा उनकी मृत्युतिथि पर पार्वण [[श्राद्ध]] करते हैं। पिता-माता आदि पारिवारिक मनुष्यों की मृत्यु के पश्चात्‌ उनकी तृप्ति के लिए श्रद्धापूर्वक किए जाने वाले कर्म को पितृ श्राद्ध कहते हैं।
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==== [[पितृपक्ष|भूमिका: पितृपक्ष की अवधारणा]] ====
'''श्रद्धया इदं श्राद्धम्‌''' (जो श्र्द्धा से किया जाय, वह श्राद्ध है।) भावार्थ है प्रेत और पित्त्तर के निमित्त, उनकी आत्मा की तृप्ति के लिए श्रद्धापूर्वक जो अर्पित किया जाए वह श्राद्ध है।
पितृपक्ष, जिसे श्राद्ध पक्ष के नाम से भी जाना जाता है, हिन्दू धर्म का एक महत्वपूर्ण धार्मिक पर्व है। यह पर्व हर वर्ष अश्विन मास के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि से प्रारंभ होता है और अमावस्या तक चलता है। इस सोलह दिनों की अवधि में हिन्दू धर्मावलंबी अपने पितरों की आत्मा की शांति और तृप्ति के लिए विशेष अनुष्ठान, तर्पण, और पिंडदान करते हैं।
 
पितृपक्ष का महत्व इस विचार पर आधारित है कि इस अवधि में पितरों की आत्माएं पृथ्वी पर आती हैं और अपने वंशजों से जल, पिंड, और अन्न की आकांक्षा करती हैं। पितरों के प्रति श्रद्धा व्यक्त करते हुए किए गए इन अनुष्ठानों को अत्यंत पुण्यदायी माना गया है। इन अनुष्ठानों के माध्यम से पितरों को तृप्त करने से उनके आशीर्वाद की प्राप्ति होती है, जो परिवार के समृद्धि, शांति, और उन्नति के लिए आवश्यक है।
हिन्दू धर्म में माता-पिता की सेवा को सबसे बड़ी पूजा माना गया है। इसलिए हिंदू धर्म शास्त्रों में पितरों का उद्धार करने के लिए पुत्र की अनिवार्यता मानी गई हैं। जन्मदाता माता-पिता को मृत्यु-उपरांत लोग विस्मृत न कर दें, इसलिए उनका श्राद्ध करने का विशेष विधान बताया गया है। भाद्रपद पूर्णिमा से आश्विन कृष्णपक्ष अमावस्या तक के सोलह दिनों को पितृपक्ष कहते हैं जिसमे हम अपने पूर्वजों की सेवा करते हैं।
 
==== [[वैदिक धर्म|वैदिक और पुराणिक संदर्भ]] ====
आश्विन कृष्ण प्रतिपदा से लेकर अमावस्या तक ब्रह्माण्ड की ऊर्जा तथा उस उर्जा के साथ पितृप्राण पृथ्वी पर व्याप्त रहता है। धार्मिक ग्रंथों में मृत्यु के बाद आत्मा की स्थिति का बड़ा सुन्दर और वैज्ञानिक विवेचन भी मिलता है। मृत्यु के बाद दशगात्र और षोडशी-सपिण्डन तक मृत व्यक्ति की '''प्रेत''' संज्ञा रहती है। पुराणों के अनुसार वह सूक्ष्म शरीर जो आत्मा भौतिक शरीर छोड़ने पर धारण करती है प्रेत होती है। प्रिय के अतिरेक की अवस्था "प्रेत" है क्यों की आत्मा जो सूक्ष्म शरीर धारण करती है तब भी उसके अन्दर मोह, माया भूख और प्यास का अतिरेक होता है। सपिण्डन के बाद वह प्रेत, पित्तरों में सम्मिलित हो जाता है।
पितृपक्ष का उल्लेख हिन्दू धर्म के प्राचीन ग्रंथों, जैसे कि वेद, उपनिषद, और पुराणों में व्यापक रूप से मिलता है। ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, और अथर्ववेद में पितरों के लिए समर्पित मंत्रों और प्रार्थनाओं का उल्लेख किया गया है। यह सिद्ध करता है कि वैदिक काल से ही पितरों के प्रति सम्मान और श्रद्धा प्रकट करने के लिए श्राद्ध कर्म का आयोजन किया जाता रहा है।
 
'''[[ऋग्वेद]]''' के निम्नलिखित मंत्र में पितरों के प्रति श्रद्धा प्रकट की गई है: ''"स्वधा नमस्तार्पणीयाय पूर्वज्यैस्ते नमः पितरः स्वधाया।"''
पितृपक्ष भर में जो तर्पण किया जाता है उससे वह पितृप्राण स्वयं आप्यापित होता है। पुत्र या उसके नाम से उसका परिवार जो यव (जौ) तथा चावल का पिण्ड देता है, उसमें से अंश लेकर वह अम्भप्राण का ऋण चुका देता है। ठीक आश्विन कृष्ण प्रतिपदा से वह चक्र उर्ध्वमुख होने लगता है। 15 दिन अपना-अपना भाग लेकर शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से पितर उसी ब्रह्मांडीय उर्जा के साथ वापस चले जाते हैं। इसलिए इसको पितृपक्ष कहते हैं और इसी पक्ष में श्राद्ध करने से पित्तरों को प्राप्त होता है।
 
इसका अर्थ है, "हे पितरों, आपको हमारा नमस्कार है। आप सभी पितरों के लिए हम यह तर्पण समर्पित करते हैं।"
पुराणों में कई कथाएँ इस उपलक्ष्य को लेकर हैं जिसमें [[कर्ण]] के पुनर्जन्म की कथा काफी प्रचलित है। एवं हिन्दू धर्म में सर्वमान्य श्री रामचरित में भी श्री राम के द्वारा श्री दशरथ और जटायु को गोदावरी नदी पर '''जलांजलि''' देने का उल्लेख है एवं भरत जी के द्वारा दशरथ हेतु दशगात्र विधान का उल्लेख '''भरत कीन्हि दशगात्र विधाना''' तुलसी रामायण में हुआ है।
 
'''[[यजुर्वेद]]''' में पितरों की तृप्ति के लिए विशेष मंत्र उच्चारित किए गए हैं, जो दर्शाते हैं कि पितरों के प्रति श्रद्धा भाव वैदिक धर्म का अभिन्न हिस्सा रहा है। ये मंत्र और अनुष्ठान पितरों की आत्मा की शांति के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माने जाते हैं।
भारतीय धर्मग्रंथों के अनुसार मनुष्य पर तीन प्रकार के ऋण प्रमुख माने गए हैं- पितृ ऋण, देव ऋण तथा ऋषि ऋण। इनमें पितृ ऋण सर्वोपरि है। पितृ ऋण में पिता के अतिरिक्त माता तथा वे सब बुजुर्ग भी सम्मिलित हैं, जिन्होंने हमें अपना जीवन धारण करने तथा उसका विकास करने में सहयोग दिया।
 
'''[[गरुड़ पुराण]]''' में पितृऋण के महत्व का वर्णन मिलता है। इस पुराण में कहा गया है कि पितृऋण से मुक्ति पाने के लिए श्राद्ध, तर्पण, और पिंडदान अत्यंत आवश्यक हैं। जो व्यक्ति अपने पितरों का उचित प्रकार से श्राद्ध नहीं करता, उसे जीवन में अनेक प्रकार के कष्टों का सामना करना पड़ता है।
पितृपक्ष में हिन्दू लोग मन कर्म एवं वाणी से संयम का जीवन जीते हैं; पितरों को स्मरण करके जल चढाते हैं; निर्धनों एवं ब्राह्मणों को दान देते हैं। पितृपक्ष में प्रत्येक परिवार में मृत माता-पिता का '''[[श्राद्ध]]''' किया जाता है, परंतु '''[[गया]] श्राद्ध''' का विशेष महत्व है। वैसे तो इसका भी शास्त्रीय समय निश्चित है, परंतु ‘गया सर्वकालेषु पिण्डं दधाद्विपक्षणं’ कहकर सदैव पिंडदान करने की अनुमति दे दी गई है।
 
'''[[श्राद्ध|पितृपक्ष और श्राद्ध की प्रक्रिया]]'''
एकैकस्य तिलैर्मिश्रांस्त्रींस्त्रीन् दद्याज्जलाज्जलीन्। यावज्जीवकृतं पापं तत्क्षणादेव नश्यति।
 
पितृपक्ष के दौरान हिन्दू धर्मावलंबी पिंडदान, तर्पण, और श्राद्ध कर्म करते हैं। ये अनुष्ठान पितरों की आत्मा की तृप्ति के लिए किए जाते हैं और इनका धार्मिक महत्व अत्यधिक है। श्राद्ध में मुख्यतः तीन प्रकार के कार्य शामिल होते हैं:
अर्थात् जो अपने पितरों को तिल-मिश्रित जल की तीन-तीन अंजलियाँ प्रदान करते हैं, उनके जन्म से तर्पण के दिन तक के पापों का नाश हो जाता है। हमारे हिंदू धर्म-दर्शन के अनुसार जिस प्रकार जिसका जन्म हुआ है, उसकी मृत्यु भी निश्चित है; उसी प्रकार जिसकी मृत्यु हुई है, उसका जन्म भी निश्चित है। ऐसे कुछ विरले ही होते हैं जिन्हें मोक्ष प्राप्ति हो जाती है। पितृपक्ष में तीन पीढ़ियों तक के पिता पक्ष के तथा तीन पीढ़ियों तक के माता पक्ष के पूर्वजों के लिए तर्पण किया जाता हैं। इन्हीं को पितर कहते हैं। दिव्य पितृ तर्पण, देव तर्पण, ऋषि तर्पण और दिव्य मनुष्य तर्पण के पश्चात् ही स्व-पितृ तर्पण किया जाता है।
भाद्रपद पूर्णिमा से आश्विन कृष्णपक्ष अमावस्या तक के सोलह दिनों को पितृपक्ष कहते हैं। जिस तिथि को माता-पिता का देहांत होता है, उसी तिथी को पितृपक्ष में उनका श्राद्ध किया जाता है। शास्त्रों के अनुसार पितृपक्ष में अपने पितरों के निमित्त जो अपनी शक्ति सामर्थ्य के अनुरूप शास्त्र विधि से श्रद्धापूर्वक श्राद्ध करता है, उसके सकल मनोरथ सिद्ध होते हैं और घर-परिवार, व्यवसाय तथा आजीविका में हमेशा उन्नति होती है।
पितृ दोष के अनेक कारण होते हैं। परिवार में किसी की अकाल मृत्यु होने से, अपने माता-पिता आदि सम्मानीय जनों का अपमान करने से, मरने के बाद माता-पिता का उचित ढंग से क्रियाकर्म और श्राद्ध नहीं करने से, उनके निमित्त वार्षिक श्राद्ध आदि न करने से पितरों को दोष लगता है। इसके फलस्वरूप परिवार में अशांति, वंश-वृद्धि में रूकावट, आकस्मिक बीमारी, संकट, धन में बरकत न होना, सारी सुख सुविधाएँ होते भी मन असन्तुष्ट रहना आदि पितृ दोष हो सकते हैं।
यदि परिवार के किसी सदस्य की अकाल मृत्यु हुई हो तो पितृ दोष के निवारण के लिए शास्त्रीय विधि के अनुसार उसकी आत्म शांति के लिए किसी पवित्र तीर्थ स्थान पर श्राद्ध करवाएँ। अपने माता-पिता तथा अन्य ज्येष्ठ जनों का अपमान न करें। प्रतिवर्ष पितृपक्ष में अपने पूर्वजों का श्राद्ध, तर्पण अवश्य करें। यदि इन सभी क्रियाओं को करने के पश्चात् पितृ दोष से मुक्ति न होती हो तो ऐसी स्थिति में किसी सुयोग्य कर्मनिष्ठ विद्वान ब्राह्मण से श्रीमद् भागवत् पुराण की कथा करवायें। वैसे श्रीमद् भागवत् पुराण की कथा कोई भी श्रद्धालु पुरुष अपने पितरों की आम शांति के लिए करवा सकता है। इससे विशेष पुण्य फल की प्राप्ति होती है।
 
# '''[[पिंडदान]]''': पिंडदान के समय, चावल, जौ, तिल, और गाय के दूध से बने पिंड (गोल आकार के खाद्य पदार्थ) को पितरों की आत्मा के निमित्त अर्पित किया जाता है। पिंडदान की प्रक्रिया अत्यंत विधिपूर्वक की जाती है, और इसे परिवार के सबसे बड़े पुत्र द्वारा संपन्न किया जाता है। अन्य परिवारजन भी इसमें भाग ले सकते हैं, लेकिन बड़े पुत्र का विशेष महत्व है।
मत्स्य पुराण में तीन प्रकार के श्राद्ध प्रमुख बताये गए है। '''त्रिविधं श्राद्ध मुच्यते''' के अनुसार मत्स्य पुराण में तीन प्रकार के श्राद्ध बतलाए गए है, जिन्हें नित्य, नैमित्तिक एवं काम्य श्राद्ध कहते हैं।
# '''[[तर्पण]]''': तर्पण का अर्थ होता है जल अर्पित करना। यह जल अर्पण पितरों की आत्मा की तृप्ति के लिए किया जाता है। तर्पण के दौरान, हाथ जोड़कर जल को तिल, कुशा, और जौ के साथ मिलाकर पितरों को अर्पित किया जाता है। इस प्रक्रिया के द्वारा पितरों को संतोष प्राप्त होता है और वे अपने वंशजों को आशीर्वाद प्रदान करते हैं।
# '''[[भोज|श्राद्ध भोज]]''': श्राद्ध के दिन ब्राह्मणों और गरीबों को भोजन कराने की परंपरा है। यह भोजन पितरों के निमित्त अर्पित किया जाता है और इसका उद्देश्य पितरों की आत्मा की शांति और तृप्ति है। यह माना जाता है कि इस भोजन को पितर स्वयं ग्रहण करते हैं, जिससे उनकी आत्मा संतुष्ट होती है।
 
==== [https://trendingtadka.com/pitrapaksh/ पितृपक्ष की धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टि] ====
यमस्मृति में पांच प्रकार के श्राद्धों का वर्णन मिलता है। जिन्हें नित्य, नैमित्तिक, काम्य, वृद्धि और पार्वण के नाम से श्राद्ध है।
पितृपक्ष का महत्व केवल धार्मिक अनुष्ठानों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह हिन्दू धर्म के आध्यात्मिक जीवन का भी एक महत्वपूर्ण अंग है। यह अवधि पितरों के प्रति हमारी जिम्मेदारी और कृतज्ञता प्रकट करने का समय है।
 
धर्मशास्त्रों में यह बताया गया है कि पितृपक्ष के दौरान किए गए श्राद्ध कर्म से पितरों को संतोष प्राप्त होता है और वे अपने वंशजों को आशीर्वाद प्रदान करते हैं। यह आशीर्वाद परिवार की समृद्धि, स्वास्थ्य, और सुख-शांति के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है।
'''नित्य श्राद्ध'''- प्रतिदिन किए जानें वाले श्राद्ध को नित्य श्राद्ध कहते हैं। इस श्राद्ध में विश्वेदेव को स्थापित नहीं किया जाता। यह श्राद्ध में केवल जल से भी इस श्राद्ध को सम्पन्न किया जा सकता है।
 
'''[[मनुस्मृति]]''' में कहा गया है:
'''नैमित्तिक श्राद्ध'''- किसी को निमित्त बनाकर जो श्राद्ध किया जाता है, उसे नैमित्तिक श्राद्ध कहते हैं। इसे एकोद्दिष्ट के नाम से भी जाना जाता है। एकोद्दिष्ट का मतलब किसी एक को निमित्त मानकर किए जाने वाला श्राद्ध जैसे किसी की मृत्यु हो जाने पर दशाह, एकादशाह आदि एकोद्दिष्ट श्राद्ध के अन्तर्गत आता है। इसमें भी विश्वेदेवोंको स्थापित नहीं किया जाता।
''"श्राद्धेन पितरः तृप्ताः, तृप्ताः तु पितरः सुतान्।"
अर्थात, "श्राद्ध से पितर तृप्त होते हैं, और तृप्त पितर अपने वंशजों को आशीर्वाद प्रदान करते हैं।"''
 
पितृपक्ष में संयम, श्रद्धा, और समर्पण का जीवन जीना अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है। इस अवधि में ब्रह्मचर्य का पालन, सत्य बोलना, और सात्विक भोजन करना आवश्यक होता है। पितृपक्ष के दौरान किए गए दान, पुण्यकर्म, और अनुष्ठान कई गुना अधिक फलदायी होते हैं और व्यक्ति को पितृदोष से मुक्ति मिलती है।
'''काम्य श्राद्ध'''- किसी कामना की पूर्ति के निमित्त जो श्राद्ध किया जाता है। वह काम्य श्राद्ध के अन्तर्गत आता है।
 
==== [https://trendingtadka.com/pitrapaksh/ गया: पिंडदान और तर्पण का पवित्र स्थल] ====
'''वृद्धि श्राद्ध'''- किसी प्रकार की वृद्धि में जैसे पुत्र जन्म, वास्तु प्रवेश, विवाहादि प्रत्येक मांगलिक प्रसंग में भी पितरों की प्रसन्नता हेतु जो श्राद्ध होता है उसे वृद्धि श्राद्ध कहते हैं। इसे नान्दीश्राद्ध या नान्दीमुखश्राद्ध के नाम भी जाना जाता है, यह एक प्रकार का कर्म कार्य होता है। दैनंदिनी जीवन में देव-ऋषि-पित्र तर्पण भी किया जाता है।
गया, जो बिहार राज्य में स्थित है, हिन्दू धर्म के सबसे पवित्र स्थलों में से एक है। यहां पितृपक्ष के दौरान लाखों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं और अपने पितरों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान और तर्पण करते हैं। गया का धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व इतना अधिक है कि यहां पर किए गए पिंडदान को अत्यंत पुण्यदायी माना जाता है।
 
गया का उल्लेख धार्मिक ग्रंथों में एक पवित्र तीर्थ के रूप में मिलता है। '''[[विष्णु पुराण]]''' के अनुसार, भगवान विष्णु ने गयासुर नामक असुर का वध किया था और उसके शरीर को पृथ्वी पर स्थापित कर दिया था। इसी स्थान पर विष्णु पद मंदिर का निर्माण किया गया, जहां भगवान विष्णु के चरण चिन्ह स्थित हैं। इस मंदिर का महत्व हिन्दू धर्म में अत्यंत उच्च माना जाता है और यहां पिंडदान करने से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है।
'''पार्वण श्राद्ध'''- पार्वण श्राद्ध पर्व से सम्बन्धित होता है। किसी पर्व जैसे पितृपक्ष, अमावास्या या पर्व की तिथि आदि पर किया जाने वाला श्राद्ध पार्वण श्राद्ध कहलाता है। यह श्राद्ध विश्वेदेवसहित होता है।
 
गया का एक अन्य महत्वपूर्ण स्थल '''[[फल्गू नदी|फल्गु नदी]]''' है, जो पिंडदान के लिए अत्यंत पवित्र मानी जाती है। यह नदी धार्मिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि यहां भगवान राम ने अपने पिता दशरथ का पिंडदान किया था। फल्गु नदी के तट पर पिंडदान करना अत्यंत पुण्यदायी माना गया है और यहां पितरों की आत्मा को तृप्ति प्राप्त होती है।
'''सपिण्डनश्राद्ध'''- सपिण्डनशब्द का अभिप्राय पिण्डों को मिलाना। पितर में ले जाने की प्रक्रिया ही सपिण्डनहै। प्रेत पिण्ड का पितृ पिण्डों में सम्मेलन कराया जाता है। इसे ही सपिण्डनश्राद्ध कहते हैं।
 
==== [[पितृ दोष|पितृदोष और उसका निवारण]] ====
'''गोष्ठी श्राद्ध'''- गोष्ठी शब्द का अर्थ समूह होता है। जो श्राद्ध सामूहिक रूप से या समूह में सम्पन्न किए जाते हैं। उसे गोष्ठी श्राद्ध कहते हैं।
पितृदोष, हिन्दू ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, एक गंभीर दोष है जो तब उत्पन्न होता है जब पितरों को उनकी आत्मा की शांति के लिए आवश्यक अनुष्ठान नहीं किए जाते हैं। पितृदोष के कारण परिवार में विभिन्न प्रकार की समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं, जैसे कि वंश वृद्धि में रुकावट, आकस्मिक बीमारी, धन की कमी, और अन्य अशुभ घटनाएं।
 
पितृदोष का निवारण करने के लिए पितृपक्ष में श्राद्ध कर्म, तर्पण, और पिंडदान करना अत्यंत आवश्यक होता है। इसके अतिरिक्त, श्रीमद्भागवत पुराण की कथा का श्रवण, गीता पाठ, और ब्राह्मणों को दान देना भी पितृदोष के निवारण के उपाय माने जाते हैं।
'''शुद्धयर्थश्राद्ध'''- शुद्धि के निमित्त जो श्राद्ध किए जाते हैं। उसे शुद्धयर्थश्राद्ध कहते हैं। जैसे शुद्धि हेतु ब्राह्मण भोजन कराना चाहिए।
 
'''[[वाराह पुराण|वराह पुराण]]''' में कहा गया है कि पितृदोष से मुक्त होने के लिए गया में पिंडदान और तर्पण करना अनिवार्य है। यह भी कहा गया है कि जो व्यक्ति पितृपक्ष के दौरान अपने पितरों का श्राद्ध करता है, उसे पितृदोष से मुक्ति प्राप्त होती है और उसके जीवन में सुख-शांति और समृद्धि आती है।
'''कर्मागश्राद्ध'''- कर्मागका सीधा साधा अर्थ कर्म का अंग होता है, अर्थात् किसी प्रधान कर्म के अंग के रूप में जो श्राद्ध सम्पन्न किए जाते हैं। उसे कर्मागश्राद्ध कहते हैं।
 
==== [https://trendingtadka.com/pitrapaksh/ पितृपक्ष का मनोवैज्ञानिक और सांस्कृतिक प्रभाव] ====
'''यात्रार्थश्राद्ध'''- यात्रा के उद्देश्य से किया जाने वाला श्राद्ध यात्रार्थश्राद्ध कहलाता है। जैसे- तीर्थ में जाने के उद्देश्य से या देशान्तर जाने के उद्देश्य से जिस श्राद्ध को सम्पन्न कराना चाहिए वह यात्रार्थश्राद्ध ही है। इसे घृतश्राद्ध भी कहा जाता है।
पितृपक्ष न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि इसका मनोवैज्ञानिक और सांस्कृतिक प्रभाव भी व्यापक है। यह पर्व व्यक्ति को अपने पूर्वजों के प्रति जिम्मेदारी और कृतज्ञता का बोध कराता है।
 
आधुनिक समाज में जहां व्यक्ति अपने पूर्वजों के प्रति कर्तव्यों को भूलता जा रहा है, पितृपक्ष का आयोजन उन्हें याद दिलाने का एक माध्यम है। यह पर्व हमें हमारी जड़ों से जोड़ता है और हमारे परिवार के इतिहास को याद रखने का अवसर प्रदान करता है।
'''पुष्ट्यर्थश्राद्ध'''- पुष्टि के निमित्त जो श्राद्ध सम्पन्न हो, जैसे शारीरिक एवं आर्थिक उन्नति के लिए किया जाना वाला श्राद्ध पुष्ट्यर्थश्राद्ध कहलाता है।
 
पितृपक्ष के दौरान किए गए अनुष्ठान व्यक्ति के मन को शांति प्रदान करते हैं और उन्हें यह महसूस कराते हैं कि वे अपने पितरों के प्रति अपनी जिम्मेदारी का निर्वाह कर रहे हैं। यह पर्व परिवार के सभी सदस्यों को एक साथ लाता है और उन्हें एकता और सद्भाव का महत्व सिखाता है।
धर्मसिन्धु के अनुसार श्राद्ध के ९६ अवसर बतलाए गए हैं। एक वर्ष की अमावास्याएं'(12) पुणादितिथियां (4),'मन्वादि तिथियां (14) संक्रान्तियां (12) वैधृति योग (12), व्यतिपात योग (12) पितृपक्ष (15), अष्टकाश्राद्ध (5) अन्वष्टका (5) तथा पूर्वेद्यु:(5) कुल मिलाकर श्राद्ध के यह ९६ अवसर प्राप्त होते हैं।'पितरों की संतुष्टि हेतु विभिन्न पित्र-कर्म का विधान है।
 
पितृपक्ष का सांस्कृतिक महत्व भी कम नहीं है। इस पर्व के दौरान विभिन्न धार्मिक गतिविधियों, मेलों, और आयोजनों का आयोजन किया जाता है, जिसमें समाज के सभी वर्गों के लोग भाग लेते हैं। यह पर्व समाज के सभी वर्गों को एक साथ लाने का कार्य करता है और उन्हें एकजुटता और सामूहिकता का संदेश देता है।
पुराणोक्त पद्धति से निम्नांकित कर्म किए जाते हैं :- एकोदिष्ट श्राद्ध, पार्वण श्राद्ध, नाग बलि कर्म, नारायण बलि कर्म, त्रिपिण्डी श्राद्ध, महालय श्राद्ध पक्ष में श्राद्ध कर्म उपरोक्त कर्मों हेतु विभिन्न संप्रदायों में विभिन्न प्रचलित परिपाटियाँ चली आ रही हैं। अपनी कुल-परंपरा के अनुसार पितरों की तृप्ति हेतु श्राद्ध कर्म अवश्य करना चाहिए। कैसे करें श्राद्ध कर्म महालय श्राद्ध पक्ष में पितरों के निमित्त घर में क्या कर्म करना चाहिए।
 
==== [https://pitrapaksh.com/ पितृपक्ष के दौरान जीवन शैली और आचार विचार] ====
'''मान्य स्थान'''
पितृपक्ष के दौरान हिन्दू धर्म में कुछ विशेष नियमों और आचार विचारों का पालन करना अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है। इन नियमों का पालन पितरों की आत्मा की शांति के लिए किया जाता है और इन्हें ध्यानपूर्वक संपन्न किया जाना चाहिए।
 
# '''शुद्धता''': पितृपक्ष के दौरान शुद्धता का विशेष ध्यान रखना चाहिए। घर को साफ-सुथरा रखना, स्वच्छ कपड़े पहनना, और सात्विक भोजन ग्रहण करना आवश्यक होता है।
'''गया'''
# '''[[सात्विक आहार|सात्विक भोजन]]''': पितृपक्ष के दौरान सात्विक भोजन का विशेष महत्व है। इस अवधि में तामसिक और राजसिक भोजन से परहेज करना चाहिए। लहसुन, प्याज, मांस, और मदिरा का सेवन वर्जित है। इस समय कंदमूल, फल, और दूध का सेवन करने से पितरों की आत्मा संतुष्ट होती है।
# '''[[दान|दान और पुण्यकर्म]]''': पितृपक्ष के दौरान दान और पुण्यकर्म का विशेष महत्व है। ब्राह्मणों को भोजन कराना, उन्हें वस्त्र, धन, और अन्य आवश्यक वस्त्रें दान करना पुण्यकारी माना जाता है। इस अवधि में गरीबों और जरूरतमंदों की सहायता करना अत्यंत फलदायी होता है।
# '''[[साधना|साधना और प्रार्थना]]''': पितृपक्ष के दौरान साधना, ध्यान, और प्रार्थना का विशेष महत्व है। भगवान विष्णु और पितरों की आराधना करने से पितरों की आत्मा को शांति प्राप्त होती है और वे अपने वंशजों को आशीर्वाद प्रदान करते हैं।
 
==== [https://trendingtadka.com/pitrapaksh/ गया में पितृपक्ष का आयोजन और इसके धार्मिक महत्व] ====
जब बात आती है श्राद्ध कर्म की तो बिहार स्थित गया का नाम बड़ी प्रमुखता व आदर से लिया जाता है। गया समूचे भारत वर्ष में हीं नहीं सम्पूर्ण विश्व में दो स्थान श्राद्ध तर्पण हेतु बहुत प्रसिद्द है। वह दो स्थान है बोध गया और विष्णुपद मन्दिर | '''विष्णुपद मंदिर''' वह स्थान जहां माना जाता है कि स्वयं भगवान विष्णु के चरण उपस्थित है, जिसकी पूजा करने के लिए लोग देश के कोने-कोने से आते हैं। गया में जो दूसरा सबसे प्रमुख स्थान है जिसके लिए लोग दूर दूर से आते है वह स्थान एक नदी है, उसका नाम "फल्गु नदी" है। ऐसा माना जाता है कि मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम ने स्वयं इस स्थान पर अपने पिता राजा दशरथ का पिंड दान किया था। तब से यह माना जाने लगा की इस स्थान पर आकर कोई भी व्यक्ति अपने पितरो के निमित्त पिंड दान करेगा तो उसके पितृ उससे तृप्त रहेंगे और वह व्यक्ति अपने पितृऋण से उरिण हो जायेगा | इस स्थान का नाम ‘गया’ इसलिए रखा गया क्योंकि भगवान विष्णु ने यहीं के धरती पर असुर गयासुर का वध किया था। तब से इस स्थान का नाम भारत के प्रमुख तीर्थस्थानो में आता है और बड़ी ही श्रद्धा और आदर से "गया जी" बोला जाता है।
गया में पितृपक्ष के दौरान लाखों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं और यहां पिंडदान, तर्पण, और श्राद्ध कर्म करते हैं। गया का धार्मिक महत्व इतना अधिक है कि यहां पर किए गए पिंडदान को अत्यंत पुण्यदायी माना गया है।
 
गया में पितृपक्ष के दौरान विशेष व्यवस्था की जाती है। यहां आने वाले श्रद्धालुओं के लिए उचित आवास, भोजन, और अन्य सुविधाएं उपलब्ध कराई जाती हैं, ताकि वे अपने धार्मिक अनुष्ठानों को सही ढंग से संपन्न कर सकें। यहां के मठ, मंदिर, और आश्रम इस अवधि में विशेष आयोजन करते हैं, जिसमें भाग लेकर श्रद्धालु अपने पितरों की आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करते हैं।
===== '''[https://web.archive.org/web/20190517091735/https://www.mpanchang.com/festivals/pitrupaksha-begin/ श्राद्ध २०१९] विवरण''' =====
{| class="wikitable"
!तिथि
!दिनांक
!वार
|-
|पूर्णिमा श्राद्ध (यह कैसे हो सकता है यदि श्राद्ध का आरम्भ ही आश्विन माह के कृष्ण पक्ष से होता है। यह पूर्णिमा तो भादों माह की पूर्णमासी है)
 
गया का मुख्य आकर्षण विष्णु पद मंदिर है, जहां भगवान विष्णु के चरण चिन्ह स्थापित हैं। इस मंदिर में पिंडदान करने से पितरों की आत्मा को मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसके अलावा, फल्गु नदी के तट पर पिंडदान करना भी अत्यंत पुण्यदायी माना गया है।
|13 सितंबर 2019 शुक्रवार पूर्णमासी
 
==== [https://trendingtadka.com/pitrapaksh/ पितृपक्ष के दौरान किए जाने वाले विशेष अनुष्ठान और विधियां] ====
पितृपक्ष के दौरान विभिन्न विशेष अनुष्ठानों और विधियों का पालन किया जाता है, जो पितरों की आत्मा की शांति और तृप्ति के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माने जाते हैं। इन अनुष्ठानों को विधिपूर्वक करना आवश्यक होता है, ताकि पितरों को संतोष प्राप्त हो और वे अपने वंशजों को आशीर्वाद प्रदान कर सकें।
 
# '''पिंडदान''': पिंडदान पितृपक्ष के सबसे महत्वपूर्ण अनुष्ठानों में से एक है। इसमें चावल, तिल, और जौ से बने पिंड को पितरों के निमित्त अर्पित किया जाता है। यह पिंडदान परिवार के सबसे बड़े पुत्र द्वारा किया जाता है और इसका धार्मिक महत्व अत्यधिक है। पिंडदान के समय, व्यक्ति को शुद्धता का विशेष ध्यान रखना चाहिए और इसे विधिपूर्वक संपन्न करना चाहिए।
# '''तर्पण''': तर्पण का अर्थ होता है जल अर्पण करना। पितृपक्ष के दौरान तर्पण करना अत्यंत महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि इसके माध्यम से पितरों की आत्मा को तृप्ति प्राप्त होती है। तर्पण के समय, व्यक्ति को पवित्र जल, तिल, और जौ का उपयोग करना चाहिए और इसे विधिपूर्वक अर्पित करना चाहिए।
# '''श्राद्ध भोज''': श्राद्ध भोज का आयोजन पितरों की आत्मा की शांति के लिए किया जाता है। इसमें ब्राह्मणों और गरीबों को भोजन कराना पुण्यदायी माना जाता है। इस भोजन को पितरों के निमित्त अर्पित किया जाता है और इसका उद्देश्य पितरों की आत्मा की तृप्ति और संतोष है।
# '''दान''': पितृपक्ष के दौरान दान करने का विशेष महत्व है। ब्राह्मणों को वस्त्र, धन, और अन्य आवश्यक वस्त्रें दान करना पुण्यकारी माना जाता है। इसके अलावा, गरीबों और जरूरतमंदों की सहायता करना भी अत्यंत फलदायी होता है।
 
==== [https://pitrapaksh.com/ पितृपक्ष का आध्यात्मिक संदेश] ====
|प्रतिपदा श्राद्ध
पितृपक्ष का आध्यात्मिक संदेश अत्यंत गहरा है। यह पर्व हमें हमारी जड़ों से जोड़ता है और हमें यह सिखाता है कि हमारे पितरों का आशीर्वाद हमारे जीवन के लिए कितना महत्वपूर्ण है। पितृपक्ष का आयोजन हमें यह याद दिलाता है कि हम हमारे पितरों के प्रति कितने ऋणी हैं और हमें उनके प्रति अपनी जिम्मेदारी का निर्वाह करना चाहिए।
|14 सितंबर 2019 शानिवार।
 
पितृपक्ष हमें संयम, श्रद्धा, और समर्पण का महत्व सिखाता है। यह पर्व हमें यह सिखाता है कि हमारे पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए किए गए अनुष्ठान हमारे जीवन में सुख-शांति और समृद्धि लाते हैं। पितृपक्ष का आयोजन हमें यह सिखाता है कि हमारे जीवन का उद्देश्य केवल स्वयं का सुख नहीं है, बल्कि हमें अपने पूर्वजों के प्रति भी कृतज्ञता प्रकट करनी चाहिए और उनके आशीर्वाद की प्राप्ति के लिए अनुष्ठानों का पालन करना चाहिए।
|द्वितीया श्राद्ध
|15 सितंबर 2019
|रविवार
 
==== [https://pitrapaksh.com/ समाप्ति: पितृपक्ष की व्यापकता और इसका प्रभाव] ====
पितृपक्ष केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह हिन्दू धर्म का एक महत्वपूर्ण अंग है, जो हमें हमारे पितरों के प्रति सम्मान, श्रद्धा, और कृतज्ञता प्रकट करने का अवसर प्रदान करता है।
 
गया, इस पर्व का केंद्र बिंदु है, जहां पिंडदान और तर्पण के माध्यम से पितरों को श्रद्धांजलि दी जाती है। इस स्थान का धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व हिन्दू धर्म में अत्यंत उच्च है। पितृपक्ष का यह पर्व हमें यह सिखाता है कि हमारे पूर्वजों की आत्मा की तृप्ति हमारे जीवन की समृद्धि और सुख-शांति के लिए कितनी महत्वपूर्ण है।
|-तृतीया  श्राद्ध
|16 सितंबर 2019
|सोमवार
 
पितृपक्ष का व्यापक प्रभाव हिन्दू धर्म के अनुयायियों के जीवन पर पड़ता है। यह पर्व न केवल हमें हमारे पूर्वजों के प्रति हमारे कर्तव्यों का बोध कराता है, बल्कि यह हमें हमारे जीवन के उद्देश्य और उसके आध्यात्मिक पक्ष को समझने में भी मदद करता है।
 
इस प्रकार, पितृपक्ष केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह हमारे जीवन का एक महत्वपूर्ण अंग है, जो हमें हमारे पितरों के प्रति हमारी जिम्मेदारियों का बोध कराता है। इस पर्व के माध्यम से हम अपने पितरों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हैं और उनसे आशीर्वाद प्राप्त करते हैं, जो हमारे जीवन को सुखमय और समृद्ध बनाता है।
 
===== '''[https://trendingtadka.com/pitrapaksh/ पितृपक्ष 2024: तिथि, नियम, और हिंदू धर्म में महत्व]विवरण''' =====
 
=== पितृपक्ष 2024: तिथि, नियम, और श्राद्ध ===
{| class="wikitable"
!श्राद्ध
!दिनांक
!वार
!
|-
|पूर्णिमा श्राद्ध
|28 सितंबर 2024
|शनिवार
| rowspan="16" |External Site
[https://trendingtadka.com/pitrapaksh/ Trending Tadka]
[https://pitrapaksh.com/ पितृपक्ष official]
|-
|प्रतिपदा श्राद्ध
|29 सितंबर 2024
|रविवार
|-
|द्वितीया श्राद्ध
|30 सितंबर 2024
|सोमवार
|-
|तृतीया श्राद्ध
|1 अक्टूबर 2024
|मंगलवार
|-
|चतुर्थी श्राद्ध
|2 अक्टूबर 2024
|बुधवार
|-
|पंचमी श्राद्ध
|3 अक्टूबर 2024
|गुरुवार
|-
|षष्ठी श्राद्ध
|4 अक्टूबर 2024
|शुक्रवार
|-
|सप्तमी श्राद्ध
|5 अक्टूबर 2024
|शनिवार
|-
|अष्टमी श्राद्ध
|6 अक्टूबर 2024
|21 सितंबर 2019
|रविवार
|शानिवार
|-
|नवमी श्राद्ध
|7 अक्टूबर 2024
|22 सितंबर 2019
|सोमवार
|रविवार
|-
|दशमी श्राद्ध
|8 अक्टूबर 2024
|23 सितंबर 2019
|मंगलवार
|सोमवार
|-
|एकादशी श्राद्ध
|9 अक्टूबर 2024
|24 सितंबर 2019
|बुधवार
|मंगलवार
|-
|द्वादशी श्राद्ध
|10 अक्टूबर 2024
|'''25 सितंबर 2019
|गुरुवार
|-
|त्रयोदशी श्राद्ध
|11 अक्टूबर 2024
|शुक्रवार
|-
|चतुर्दशी श्राद्ध
|12 अक्टूबर 2024
|शनिवार
|-
|अमावस्या श्राद्ध (सर्वपितृ अमावस्या)
|13 अक्टूबर 2024
|रविवार
|}
 
=== श्राद्ध के प्रमुख नियम: ===
 
# '''श्राद्ध तिथि का चयन''': जिस तिथि को पितरों का देहांत हुआ हो, उसी तिथि पर श्राद्ध करना सर्वोत्तम माना जाता है।
== बाहरी कड़ियाँ ==
# '''विधिपूर्वक श्राद्ध''': शुद्धता का पालन करते हुए, विधिपूर्वक तर्पण, पिंडदान और ब्राह्मण भोज का आयोजन करें।
* क्यों मन जाता है पितृ पक्ष <ref>{{Cite web|url=https://ejanata.in/%e0%a4%aa%e0%a4%bf%e0%a4%a4%e0%a5%83-%e0%a4%aa%e0%a4%95%e0%a5%8d%e0%a4%b7-2023-%e0%a4%85%e0%a4%aa%e0%a4%a8%e0%a5%87-%e0%a4%aa%e0%a5%82%e0%a4%b0%e0%a5%8d%e0%a4%b5%e0%a4%9c%e0%a5%8b%e0%a4%82-%e0%a4%95-134/|title=पितृ पक्ष 2023: अपने पूर्वजों के सम्मान में जुटें और उनका आशीर्वाद प्राप्त करें!|date=2023-09-30|year=2023|website=eJanata|language=Hindi|archive-date=2023-09-30|dead-url=no|access-date=2023-09-30}}</ref> (eJanata)
# '''दान-पुण्य''': पितृपक्ष के दौरान दान करना अत्यंत फलदायी माना जाता है।
 
[[श्रेणी:हिन्दू धर्म]]