सामग्री पर जाएँ

शिखरजी

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
छापने योग्य संस्करण अब समर्थित नहीं है और इसे रेंडर करने में त्रुटियाँ आ सकती हैं। कृपया अपने ब्राउज़र के बुकमार्क्स अपडेट करें और ब्राउज़र में छापने के डिफ़ॉल्ट विकल्पों का इस्तेमाल करें।
श्री सम्मेत/सम्मेद शिखरजी
पारसनाथ पहाड़ पर जैन मंदिर
उच्चतम बिंदु
ऊँचाई1,350 मी॰ (4,430 फीट) [1]
निर्देशांक23°57′40″N 86°08′14″E / 23.9611°N 86.1371°E / 23.9611; 86.1371निर्देशांक: 23°57′40″N 86°08′14″E / 23.9611°N 86.1371°E / 23.9611; 86.1371
भूगोल
श्री सम्मेत/सम्मेद शिखरजी is located in झारखण्ड
श्री सम्मेत/सम्मेद शिखरजी
श्री सम्मेत/सम्मेद शिखरजी
झारखंड में पारसनाथ की स्थिति
स्थानझारखंड,  भारत
मातृ श्रेणीछोटा नागपुर पठार

शिखरजी या श्री शिखरजी भारत के झारखंड राज्य के गिरिडीह ज़िले में छोटा नागपुर पठार पर स्थित एक पहाड़ी है जो विश्व का सबसे महत्वपूर्ण जैन तीर्थ स्थल भी है। 'श्री सम्मेत् शिखर जी' के रूप में चर्चित इस पुण्य क्षेत्र में जैन धर्म के 24 में से 20 तीर्थंकरों (सर्वोच्च जैन गुरुओं) ने मोक्ष की प्राप्ति की। यहीं 23 वें तीर्थकर भगवान पार्श्वनाथ ने भी निर्वाण प्राप्त किया था। माना जाता है कि 24 में से 20 जैन तीर्थंकरों ने यहां पर मोक्ष प्राप्त किया था।जो चार हजार सिडीयो पर स्थित है[2] 1,350 मीटर (4,430 फ़ुट) ऊँचा यह पहाड़ झारखंड का सबसे ऊंचा स्थान भी है।

==स्थिति==1365m शिखरजी जैन धर्म के अनुयायिओं के लिए एक महतवपूर्ण तीर्थ स्थल है। पारसनाथ पर्वत विश्व प्रसिद्ध है। यहाँ हर साल लाखों जैन धर्मावलंबियों आते है, साथ-साथ अन्य पर्यटक भी पारसनाथ पर्वत की वंदना करना जरूरी समझते हैं। गिरिडीह स्टेशन से पहाड़ की तलहटी मधुवन तक क्रमशः 14 और 18 मील है। पहाड़ की चढ़ाई उतराई तथा यात्रा करीब 18 मील की है। सम्मेद शिखर जैन धर्म को मानने वालों का एक प्रमुख तीर्थ स्थान है। यह जैन तीर्थों में सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। जैन धर्मशास्त्रों के अनुसार जैन धर्म के 24 में से 20 तीर्थंकरों और अनेक संतों व मुनियों ने यहाँ मोक्ष प्राप्त किया था। इसलिए यह 'सिद्धक्षेत्र' कहलाता है और जैन धर्म में इसे तीर्थराज अर्थात् 'तीर्थों का राजा' कहा जाता है। यह तीर्थ भारत के झारखंड प्रदेश के गिरिडीह जिले में मधुबन क्षेत्र में स्थित है। यह जैन धर्म का प्रमुख तीर्थ है। इसे 'पारसनाथ पर्वत' के नाम से भी जाना जाता है। सम्मेत शिखर जी#cite note-1

शिखर जी पहाड़ी

शाश्वत तीर्थ

जैन ग्रंथों के अनुसार सम्मेत्/सम्मेद शिखर और अयोध्या, इन दोनों का अस्तित्व सृष्टि के समानांतर है। इसलिए इनको 'शाश्वत' माना जाता है। प्राचीन ग्रंथों में यहाँ पर तीर्थंकरों और तपस्वी संतों ने कठोर तपस्या और ध्यान द्वारा मोक्ष प्राप्त किया। यही कारण है कि जब सम्मेद शिखर तीर्थयात्रा शुरू होती है तो हर तीर्थयात्री का मन तीर्थंकरों का स्मरण कर अपार श्रद्धा, आस्था, उत्साह और खुशी से भरा होता है।

शिखर जी, पारसनाथ हिल

मान्यताएँ

जैन धर्म शास्त्रों में लिखा है कि अपने जीवन में सम्मेत्त शिखर तीर्थ की एक बार भावपूर्ण यात्रा करने पर मृत्यु के बाद व्यक्ति को पशु योनि और नरक प्राप्त नहीं होता। यह भी लिखा गया है कि जो व्यक्ति सम्मेद/सम्मेत् शिखर आकर पूरे मन, भाव और निष्ठा से भक्ति करता है, उसे मोक्ष प्राप्त होता है और इस संसार के सभी जन्म-कर्म के बंधनों से अगले 49 जन्मों तक मुक्त वह रहता है। यह सब तभी संभव होता है, जब यहाँ पर सभी भक्त तीर्थंकरों को स्मरण कर उनके द्वारा दिए गए उपदेशों, शिक्षाओं और सिद्धांतों का शुद्ध आचरण के साथ पालन करें। इस प्रकार यह क्षेत्र बहुत पवित्र माना जाता है। इस क्षेत्र की पवित्रता और सात्विकता के प्रभाव से ही यहाँ पर पाए जाने वाले शेर, बाघ आदि जंगली पशुओं का स्वाभाविक हिंसक व्यवहार नहीं देखा जाता। इस कारण तीर्थयात्री भी बिना भय के यात्रा करते हैं। संभवत: इसी प्रभाव के कारण प्राचीन समय से कई राजाओं, आचार्यों, भट्टारक, श्रावकों ने आत्म-कल्याण और मोक्ष प्राप्ति की भावना से तीर्थयात्रा के लिए विशाल समूहों के साथ यहाँ आकर तीर्थंकरों की उपासना, ध्यान और कठोर तप किया।[3]

मोक्ष स्थान

जैन नीति शास्त्रों में वर्णन है कि जैन धर्म के 24 तीर्थंकरों में से प्रथम तीर्थंकर भगवान 'आदिनाथ' अर्थात् भगवान ऋषभदेव ने अष्टापद कैलाश पर्वत पर, 12वें तीर्थंकर भगवान वासुपूज्य ने चंपापुरी, 22वें तीर्थंकर भगवान अरिष्ट नेमि

ने गिरनार पर्वत और 24वें और अंतिम तीर्थंकर भगवान महावीर ने पावापुरी में मोक्ष प्राप्त किया। शेष 20 तीर्थंकरों ने सम्मेत्त शिखर में मोक्ष प्राप्त किया। जैन धर्म के 23वें तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ ने भी इसी तीर्थ में कठोर तप और ध्यान द्वारा मोक्ष प्राप्त किया था। अत: भगवान पार्श्वनाथ की टोंक इस शिखर पर स्थित है। पार्श्वनाथ का प्रतीक चिन्ह सर्प है

जल मंदिर

[4]

[5] [6] [7] [8]

इन्हें भी देखें

सन्दर्भ

  1. Jharkhand Tourism:District Profiles Archived 2013-01-20 at the वेबैक मशीन, Jharkhandtourism.in, Accessed 2012-05-26
  2. On a spiritual odyssey - Hindustan Times Travel Archived 2012-08-24 at the वेबैक मशीन, Travel.hindustantimes.com, Accessed 2012-07-07
  3. "संग्रहीत प्रति". मूल से 5 मार्च 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 10 जनवरी 2015.
  4. "संग्रहीत प्रति". मूल से 13 अगस्त 2014 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 15 जून 2020.
  5. "संग्रहीत प्रति". मूल से 25 मार्च 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 15 जून 2020.
  6. "संग्रहीत प्रति". मूल से 9 मार्च 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 10 जनवरी 2015.
  7. "संग्रहीत प्रति". मूल से 21 मार्च 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 10 जनवरी 2015.
  8. "Indiapedia, Jainism." Archived 2015-04-20 at the वेबैक मशीन Hachette UK, 2013 ISBN 9350097664, 9789350097663.