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मानवेन्द्रनाथ राय

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मानवेन्द्रनाथ राय

मानवेन्द्रनाथ राय (१९३० के दशक में)
जन्म मानवेन्द्र नाथ भट्टाचार्य
06 फ़रवरी 1886
Changripota, 24 Parganas, Bengal Presidency, British India (present-day West Bengal, India)
मौत 25 जनवरी 1954(1954-01-25) (उम्र 67 वर्ष)
देहरादून, उत्तराखण्ड, भारत
राष्ट्रीयता भारतीय
शिक्षा की जगह यादवपुर विश्वविद्यालय, Communist University of the Toilers of the East
पेशा Rक्रान्तिकारी, ऐक्टिविस्ट, राजनैतिक सिद्धान्तकार, दार्शनिक

मानवेन्द्रनाथ राय (1886–1954) भारत के स्वतंत्रता-संग्राम के राष्ट्रवादी क्रान्तिकारी तथा विश्वप्रसिद्ध राजनीतिक सिद्धान्तकार थे। उनका मूल नाम 'नरेन्द्रनाथ भट्टाचार्य' था। वे मेक्सिको और भारत दोनों के ही कम्युनिस्ट पार्टियों के संस्थापक थे। वे कम्युनिस्ट इंटरनेशनल की कांग्रेस के प्रतिनिधिमण्डल में भी सम्मिलित थे। इन्होंने पहली बार औपचारिक संविधान सभा की मांग की थी।

मानवेन्द्रनाथ का जन्म कोलकाता के निकट एक गाँव में हुआ था।। इनका मूल नाम नरेन्द्रनाथ भट्टाचार्य था, जिसे बाद में बदलकर इन्होंने मानवेंद्र राय रखा। तत्कालीन बंगाल में राष्ट्रीय स्वतन्त्रता आन्दोलन की लहर चल रही थी, ऐसे समय में राजनीतिक बोध होना स्वाभाविक था। इस प्रकार प्रारम्भिक अवस्था में ही वे राष्ट्रवादी विचारों के सम्पर्क में आए। राय के जीवनी लेखक ‘मुंशी और दीक्षित’ के अनुसार, ‘‘राय का जीवन स्वामी विवेकानन्द, स्वामी रामतीर्थ और स्वामी दयानन्द से प्रभावित रहा। इन सन्तों और सुधारकों के अतिरिक्त उनके जीवन पर विपिन चन्द्र पाल और विनायक दामोदर सावरकर का अमिट प्रभाव पड़ा। शिक्षण के आरंभिक काल में ही आप क्रांतिकारी आंदोलन में रुचि लेने लगे थे। यही कारण है कि आप मैट्रिक परीक्षा उत्तीर्ण करने के पूर्व ही क्रांतिकारी आंदोलन में कूद पड़े।

पुलिस आपकी तलाश कर ही रही थी कि आप दक्षिण-पूर्वी एशिया की ओर निकल गए। जावा सुमात्रा से अमरीका पहुँच गए और वहाँ क्रांतिकारी गतिविधि का त्याग कर मार्क्सवादी विचारधारा के समर्थक बन गए। उनके विचारों की यात्रा का आरम्भ अमरीका में मार्क्सवादी विचारधारा से हुआ क्योंकि उस समय वे लेनिन के विचारों से प्रभावित थे। मैक्सिको की क्रांति में आपने ऐतिहासिक योगदान किया, जिससे आपकी प्रसिद्धि अंतरर्राष्ट्रीय स्तर पर हो गई। आपके कार्यों से प्रभावित होकर थर्ड इंटरनेशनल में आपको आमंत्रित किया गया था और उन्हें उसके अध्यक्षमंडल में स्थान दिया गया। 1921 में वे मास्को के प्राच्य विश्वविद्यालय के अध्यक्ष नियुक्त किए गए। 1921 से 1928 के बीच उन्होंने कई पत्रों का संपादन किया, जिनमें 'वानगार्ड' और 'मासेज़' मुख्य थे। सन् 1927 ई. में चीनी क्रांति के समय आपको वहाँ भेजा गया किंतु आपके स्वतंत्र विचारों से वहाँ के नेता सहमत न हो सके और मतभेद उत्पन्न हो गया। रूसी नेता इसपर आपसे क्रुद्ध हो गए और स्टालिन के राजनीतिक कोप का आपको शिकार बनना पड़ा। विदेशों में आपकी हत्या का कुचक्र चला। जर्मनी में आपको विष देने की चेष्टा की गई पर सौभाग्य से आप बच गए।

इधर देश में आपकी क्रांतिकारी गतिविधि के कारण आपकी अनुपस्थिति में कानपुर षड्यंत्र का मुकदमा चलाया गया। ब्रिटिश सरकार के गुप्तचर आप पर कड़ी नजर रखे हुए थे, फिर भी 1930 में आप गुप्त रूप से भारत लौटने में सफल हो गए। मुंबई आकर आप डाक्टर महमूद के नाम से राजनीतिक गतिविधि में भाग लेने लगे। 1931 में आप गिरफ्तार कर लिए गए। छह वर्षों तक कारावास जीवन बिताने पर 20 नवम्बर 1936 को आप जेल से मुक्त किए गए। कांग्रेस की नीतियों से आपका मतभेद हो गया था। आपने रेडिकल डिमोक्रेटिक पार्टी की स्थापना की थी। सक्रिय राजनीति से अवकाश ग्रहण कर आप जीवन के अंतिम दिनों में देहरादून में रहने लगे और यहीं २५ जनवरी 1954 को आपका निधन हुआ।

दर्शन एवं चिन्तन

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मानवेन्द्र नाथ राय का आधुनिक भारतीय राजनीतिक चिंतन में विशिष्ट स्थान है। राय का राजनीतिक चिंतन लम्बी वैचारिक यात्रा का परिणाम है। वे किसी विचारधारा से बंधे हुए नहीं रहे। उन्होंने विचारों की भौतिकवादी आधार भूमि और मानव के अस्तित्व के नैतिक प्रयोजनों के मध्य समन्वय करना आवश्यक समझा। जहाँ उन्होंने पूँजीवादी व्यवस्था की कटु आलोचना की, वहीं मार्क्सवाद की आलोचना में भी पीछे नहीं रहे। राय ने सम्पूर्ण मानवीय दर्शन की खोज के प्रयत्न के क्रम में यह निष्कर्ष निकाला कि विश्व की प्रचलित आर्थिक और राजनीतिक प्रणालियाँ मानव के समग्र कल्याण को सुनिश्चित नहीं करतीं। पूँजीवाद, मार्क्सवाद, गाँधीवाद तथा अन्य विचारधाओं में उन्होंने ऐसे तत्वों को ढूँढ निकाला जो किसी न किसी रूप में मानव की सत्ता, स्वतंत्रता, तथा स्वायत्तता पर प्रतिबन्ध लगाते हैं।

राय ने अपने नवीन मानववादी दर्शन से मानव को स्वयं अपना केन्द्र बताकर मानव की स्वतंत्रता एवं उसके व्यक्तित्व की गरिमा का प्रबल समर्थन किया है। वस्तुतः बीसवीं सदी में फासीवादी तथा साम्यवादी समग्रतावादी राज्य-व्यवस्थाओं ने व्यक्ति की स्वतन्त्रता एवं व्यक्तित्व का दमन किया और उदारवादी लोकतन्त्र में मानव-कल्याण के नाम पर निरन्तर बढ़ती केन्द्रीकरण की प्रवृत्ति से सावधान किया। राय ने व्यक्ति की स्वतन्त्रता एवं व्यक्तित्व की गरिमा के पक्ष में जो उग्र बौद्धिक विचार दिये हैं, उनका आधुनिक युग के लिए विशिष्ट महत्व है।

कृतियाँ

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आपने मार्क्सवादी राजनीति विषयक लगभग ८० पुस्तकों को लिखा है जिनमें 'रीजन, रोमांटिसिज्म ऐंड रिवॉल्यूशन, हिस्ट्री ऑव वेस्टर्न मैटोरियलिज्म, रशन रिवॉल्यूशन, रिवाल्यूशन ऐंड काउंटर रिवाल्यूशन इन चाइना' तथा 'रैडिकल ह्यूमैनिज्म' प्रसिद्ध हैं। उनकी प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं:

सन १९८७ में उनकी स्मृति में भारत सरकार ने डाकटिकट जारी किया।

(1) दी वे टू डयूरेबिल पीस

(2) वन ईयर ऑफ नॉन-कोऑपरेशन

(3) दी रिवोल्यूशन एण्ड काउण्टर रिवोल्यूशन इन चाइना

(4) रीज़न, रोमाण्टिसिज़्म एण्ड रिवोल्यूशन

(5) इण्डियान इन ट्रांज़ीशन

(6) इंडियन प्रॉबलम्स एण्ड देयर सोल्यूशन्स

(7) दी फ्यूचर ऑफ इण्डियन पॉलिटिक्स

(8) हिस्टोरिकल रोल ऑफ इस्लाम

(9) फासिज्म : इट्स फिलॉसफी, प्रोफेशन्स एण्डप्रैक्टिस

(10) मैटिरियलिज़्म

(11) न्यू ओरियन्टेशन

(12) बियोन्ड कम्यूनिस्म टू ह्यूमेनिज्म

(13) न्यू ह्यूमेनिज्म एण्ड पॉलिटिक्स

(14) पॉलिटिक्स, पावर एण्ड पार्टीज़

(15) दी प्रिंसिपल्स ऑफ रेडिकल डेमोक्रेसी

(16) कॉन्स्टीट्यूशन ऑफ फ्री इण्डिया

(17) रेडिकल ह्यूमेनिज्म

(18) अवर डिफरेन्सेज़

(19) साइन्स एण्ड फिलॉसफी

(20) ट्वेण्टि टू थीसिस

इन्हें भी देखें

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