कुलोत्तुंग चोल प्रथम
चित्र:Kulothunga territories a.png चोल साम्राज्य, १०७० ई० | |
शासन | १०७० - ११२० ई० |
उपाधि | राजकेसरी |
राजधानी | गंगैकोण्ड चोलपुरम |
रानी | मदुरान्तकी Thyagavalli Elisai Vallabhi Solakulavalliyār |
संतान | राजराजा मुम्मुंडी चोल Rajaraja Chodaganga Vikrama Chola four other sons Suttamalli |
पूर्वाधिकारी | अतिराजेन्द्र चोल |
उत्तराधिकारी | विक्रम चोल |
पिता | - |
जन्म | अज्ञात |
मृत्यु | ११२२ ई० |
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कुलोत्तुंग चोल प्रथम (१०७०-११२२ ई.) दक्षिण भारत के चोल राज्य का प्रख्यात शासक था। यह वेंगी के चालुक्यनरेश राजराज नरेंद्र (१०१९-१०६१ ई०) का पुत्र था और इसका नाम राजेंद्र (द्वितीय) था। इसका विवाह चोलवंश की राजकुमारी मधुरांतका से हुआ था जो वीरराजेंद्र की भतीजी थी। यह वेंगी राज्य का वैध अधिकारी था किंतु पारिवारिक वैमनस्य के कारण वीरराजेंद्र ने राजेंद्र (द्वितीय) के चाचा विजयादित्य (सप्तम) को अधीनता स्वीकार करने की शर्त पर राज्य प्राप्त करने में सहायता की। इस प्रकार यह वेंगी का अपना पैत्रिक राज्य प्राप्त न कर सका। किंतु कुछ वर्षों बाद वीरराजेंद्र का उत्तराधिकारी और पुत्र अधिराजेंद्र एक जनविद्रोह में मारा गया तब चालुक्य राजेंद्र (द्वितीय) ने चोल राज्य को हथिया लिया और कुलोत्तुंग (प्रथम) के नाम से इसका शासक बना। तब इसने अपने पैतृक राज्य वेंगी से विजयादित्य (सप्तम) को निकाल बाहर किया और अपने पुत्रों को वहाँ का शासक बनाकर भेजा।
कुलोत्तुंग की गणना चोल के महान नरेशों में की जाती है। अभिलेखों और अनुश्रुतियों में उसका उल्लेख संगमतविर्त्त (कर-उन्मूलक) के रूप में हुआ है। उसके शासनकाल का अधिकांश भाग अद्भुत सफलता और समृद्धि का था। उसकी नीति थी अनावश्यक युद्ध न किया जाय और उनसे बचा जाए। परिणामस्वरूप श्रीलंका को छोड़कर चोल साम्राज्य के सारे प्रदेश १११५ ई. तक उसके अधीन बने रहे। उसे मुख्य रूप से वीरराजेंद्र के दामाद कल्याणी के चालुक्य नरेश विक्रमादित्य (षष्ठ) से निरंतर संघर्ष करना पड़ा। इसके कारण उसके अंतिम दिनों में चोल राज्य की स्थिति काफी दयनीय हो गई और वह तमिल देश और तेलुगु के कुछ भागों में ही सिमट कर रह गया।
पूर्वाधिकारी अतिराजेन्द्र चोल |
चोल १०७० - ११२० ई. |
उत्तराधिकारी विक्रम चोल |
सन्दर्भ
[संपादित करें]- Nilakanta Sastri, Kallidaikurichi Aiyah (1955). The Cōḷas (2nd संस्करण). Madras, India: University of Madras. मूल से 6 जून 2013 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 11 Nov 2009.
- Nilakanta Sastri, Kallidaikurichi Aiyah (1955). A history of South India from prehistoric times to the fall of Vijayanagar (2nd संस्करण). New Delhi, India: Indian Branch, Oxford University Press. मूल से 6 जून 2013 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 11 नवम्बर 2009.