दामोदर स्वरूप 'विद्रोही'
दामोदर स्वरूप 'विद्रोही' | |
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जन्म |
2 अक्टूबर 1928 |
मौत |
11 मई 2008 |
पेशा | लेखक |
दामोदर स्वरूप 'विद्रोही' (जन्म:2 अक्टूबर 1928 - मृत्यु: 11 मई 2008) अमर शहीदों की धरती के लिये विख्यात शाहजहाँपुर जनपद के चहेते कवियों में थे। यहाँ के बच्चे-बच्चे की जुबान पर विद्रोही जी का नाम आज भी उतना ही है जितना कि तब था जब वे जीवित थे। विद्रोही की अग्निधर्मा कविताओं ने उन्हें कवि सम्मेलन के अखिल भारतीय मंचों पर स्थापित ही नहीं किया अपितु अपार लोकप्रियता भी प्रदान की। उनका एक मुक्तक तो सर्वाधिक लोकप्रिय हुआ:
- "मैं लिख न सका कुछ भी रिसालों के वास्ते,
- उत्तर न बन सका हूँ सवालों के वास्ते।
- लेकिन सियाह रात जब छायेगी मुल्क पे,
- मेरी तलाश होगी उजालों के वास्ते।"
- "मैं लिख न सका कुछ भी रिसालों के वास्ते,
सम्पूर्ण हिन्दुस्तान में उनकी पहचान वीर रस के सिद्धहस्त कवि के रूप में भले ही हुई हो परन्तु यह भी एक सच्चाई है कि उनके हृदय में एक सुमधुर गीतकार भी छुपा हुआ था। गीत, गजल, मुक्तक और छन्द के विधान पर उनकी जबर्दस्त पकड़ थी। भ्रष्टाचार, शोषण, अत्याचार, छल और प्रवचन के समूल नाश के लिये वे ओजस्वी कविताओं का निरन्तर शंखनाद करते रहे। उन्होंने चीन व पाकिस्तान युद्ध और आपातकाल के दिनों में अपनी आग्नेय कविताओं की मेघ गर्जना से देशवासियों में अदम्य साहस का संचार किया। हिन्दी साहित्य के आकाश में स्वयं को सूर्य-पुत्र घोषित करने वाले यशस्वी वाणी के धनी विद्रोही जी भौतिक रूप से भले ही इस नश्वर संसार को छोड़ गये हों परन्तु अपनी कालजयी कविताओं के लिये उन्हें सदैव याद किया जायेगा।
संक्षिप्त जीवनी
[संपादित करें]शाहजहाँपुर जनपद की पुवायाँ तहसील के ग्राम मुड़िया पवार में प्रतिष्ठित वैश्य मुरारीलाल गुप्त के घर 2 अक्टूबर 1928 को जन्मे दामोदर स्वरूप किशोरावस्था में संघर्षो में घिर गये। बचपन में माँ देवकी चल बसीं, पिता मुरारीलाल[1] मुरारी शर्मा के छद्म नाम से भूमिगत थे और समूचे देश में अंग्रेजों के विरुद्ध बगावत के स्वर गूँजने लगे थे। ऐसे में उन्होंने अपना उपनाम विद्रोही रख लिया और जन-सभाओं में कवितायें सुनाकर राष्ट्र जागरण करने लगे। अभावों के बावजूद एम०ए० तक की उच्च शिक्षा प्राप्त की और परिवार पोषण हेतु शाहजहाँपुर के गान्धी फैजाम कालेज में हिन्दी प्रवक्ता की नौकरी शुरू की किन्तु वहाँ भी स्वाभिमान पर आँच आते ही त्यागपत्र दे दिया। कवि सम्मेलनीय आकाशवृत्ति के सहारे पुनः जीवन प्रारम्भ किया और पूरे चार दशक तक काव्यमंचों पर छाये रहे। कवि सम्मेलनों में भाग लेने के कारण विद्रोही जी प्राय: घर से बाहर ही रहे परन्तु उनके ४ बेटी-बेटों के पालनपोषण में उनकी सुशीला पत्नी रमा का योगदान भी कम नहीं आँका जाना चाहिये जिन्होंने आर्य कन्या महाविद्यालय शाहजहाँपुर में अध्यापन कार्य करके घर की गाड़ी को सुचारु रूप से चलाये रक्खा।
आपातकाल के दौरान हिन्दी काव्य मंच पर जो अकम्पित स्वर समय के सत्य को पूरी सक्षमता के साथ गाते रहे, विद्रोही जी उनमें विशिष्ट थे। "दिल्ली की गद्दी सावधान" नामक अपनी रचना से पूरे देश में चर्चित हुए विद्रोही जी ने आजीवन अपने तेवर की तेजस्विता और व्यक्तित्व की ठसक बरकरार रखी।
कवि-सम्मेलन के मंच से तो अस्वस्थता के कारण उन्होंने कई वर्ष पूर्व अपने को अलग हटा लिया था किन्तु अपनी अमोघ प्रभाव वाली अनेकानेक रचनाओं के कारण वह साहित्यिक मित्रमण्डली और साहित्यानुरागियों के मध्य सदैव स्मरण किये जाते रहे, किये जाते रहेंगे।
११ मई २००८ को शाहजहाँपुर में विद्रोही का शरीर पंचतत्व में विलीन हो गया। उनकी शव यात्रा में जनपद के राजनेता, समाजसेवी, कवि साहित्यकार, अधिकारी, गणमान्य नागरिक व जनप्रतिनिधि भारी संख्या में सम्मिलित हुए[2]।
दिल्ली की गद्दी सावधान! से शोहरत
[संपादित करें]१९६० में करहल (मैनपुरी) के एक कालेज में विद्रोही जी ने अपनी लम्बी रचना दिल्ली की गद्दी सावधान! सुनाई तो पुलिस का एक दरोगा मंच पर चढ़ आया और कहा-"बन्द करो ऐसी कवितायेँ जो शासन के खिलाफ हैं।" उसी समय कसे (गठे) शरीर का एक लड़का बड़ी फुर्ती से वहाँ पहुँचा और उसने उस दरोगा को मंच पर उठाकर दे मारा।[3] विद्रोही जी ने पूछा ये नौजवान कौन है तो पता चला कि यह मुलायम सिंह यादव है। उस समय मुलायमसिंह उस कालेज के छात्र थे और प्रसिद्ध कवि उदय प्रताप सिंह वहाँ प्राध्यापक थे।
बाद में यही मुलायम सिंह यादव जब उत्तर प्रदेश के मुख्य मन्त्री बने तो उन्होंने विद्रोही जी को उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान का साहित्य भूषण सम्मान प्रदान किया।
विद्रोही जी का काव्य-चिन्तन
[संपादित करें]विद्रोही जी ने अपनी रचनाओं के माध्यम से राष्ट्र के प्रति सहज अनुराग, समग्र समर्पण और उसके जीवन-प्रवाह में व्याघात उत्पन्न करने वालों के प्रबल प्रतिरोध की दीक्षा दी। उनकी दृष्टि में कवि, चिन्तक और मनीषी वही है जो जीवन-मूल्यों के प्रति पूर्ण निष्ठावान हो और जिसकी अपनी मान्यताएं सत्ता का रुख देखकर परिवर्तित न होती हों:
- "बहक जाये हवा के साथ ही जब राष्ट्र का चिंतन,
- जहाँ का बुद्धिजीवी स्वार्थ-सुविधा में भटकता हो।
- तो ऐसा व्यक्ति कवि चिंतक मनीषी हो नहीं सकता,
- कि जिसका शब्द दुविधा की सलीबों पर लटकता हो।"
मंच पर पौरुष के दक्षिणावर्ती शंख का घोष गुंजित करता विद्रोही जी का स्वर और स्वाभिमान की तेजस्विता से दीप्त उनका दुर्द्धर्ष व्यक्तित्व आने वाली पीढ़ियों के लिये प्रेरणास्रोत रहेगा। मंच पर काव्यपाठ करते समय उनका आत्मविश्वास अक्सर बोलता था:
- "कोई न अन्यथा ले मेरा सहज समर्पण,
- रख दूँगा एक पल में वातावरण बदलकर।"
और उनकी यह प्रार्थना भी कितनी लाजबाव थी:
- "भगवान मौत देना सम्मान वह न देना,
- स्वीकारना पड़े जो अन्त:करण बदल कर।"
कवि की नई परिभाषा
[संपादित करें]"एक सच्चा कवि दूसरों को सही राह दिखाने के लिये जीवन भर संघर्ष की भट्टी में जलता ही है" इस कटु यथार्थ को अभिव्यक्ति देते हुए विद्रोही जी ने कवि के लिये नयी परिभाषा अपने इस लोकप्रिय मुक्तक के माध्यम से रची थी:
प्रशस्तियाँ
[संपादित करें]प्रो॰ बलराज मधोक के शब्दों में "विद्रोही जी एक सिद्धान्तवादी व्यक्ति थे। आज के समय जब अवसरवादिता और सिद्धान्तहीनता युगधर्म बनता जा रहा है इस प्रकार के व्यक्तियों का विशेष महत्व है[5]।" कवि भवानी प्रसाद मिश्र के अनुसार "विद्रोही जी की रचनायें प्राण के स्वर से उठकर जड़-मनों को आलोड़ित करती हैं[6]।"
पद्मश्री गोपाल दास नीरज ने उन्हें हिन्दी का नजरुल इस्लाम[7] कहकर उनकी क्रान्तिधर्मिता को रेखांकित किया तो सुप्रसिद्ध शायर अनवर जलालपुरी[8] ने बड़ी साफगोई से उनके बारे में यह कहा था: "विद्रोही वह राणाप्रताप है जिसका स्वागत हल्दी घाटी के मैदान में अकबर महान को करना चाहिये, विद्रोही ऐसा शिवाजी है जिसका इस्तकबाल तख्ते-ताऊस से उतरकर औरंगजेब को करना चाहिये और विद्रोही वह अदीब है जिसकी सेहत के लिये अदब की इबादतगाहों में दुआयें की जानी चाहिये।"
उनके बारे में गीतकार अजय गुप्त ने कहा था - "गर चापलूस होते तो पुरखुलूस होते, चलते न यूँ अकेले पूरे जुलूस होते।" श्री गुप्त ने ठीक ही कहा था, क्योंकि विद्रोही जी चापलूस कभी नहीं रहे। उन्होंने अपनी बात हर मौके पर डंके की चोट पर कही। विद्रोही जी के बारे में मदनलाल वर्मा 'क्रान्त' ने उनके कीर्तिशेष हो जाने पर यह टिप्पणी की -"विद्रोही जी को सत्ता का सिंहासन भले ही न मिला हो, लेकिन जनता जनार्दन के हृदय में उन्होंने जो आसन प्राप्त किया वह उन्हें हमेशा अमर रखेगा[9]।"
विद्रोही जी की रचनायें
[संपादित करें]- दिल्ली की गद्दी सावधान (आग्नेय कवितायें)
- गुलाम शैशव (प्रारम्भिक काल की कवितायें)
- मेरे श्रद्धेय (महापुरुषों पर कवितायें)
- समय के दस्तावेज (इतिहासपरक रचनायें)
- हार हमारी जीत तुम्हारी (गीत संग्राह)
- त्रिधारा (गजल, मुक्तक व छन्द)
- कसक (करुण काव्य)
- दीवार के साये में (आत्मकथा)
विद्रोही जी पर शोध
[संपादित करें]रुहेलखण्ड विश्वविद्यालय में विद्रोही जी के व्यक्तित्व और कृतित्व पर शोध कार्य भी सम्पन्न हुआ और आदर्श श्रीवास्तव ने जी० एफ० कालेज शाहजहाँपुर के पूर्व प्राचार्य डॉ॰ एम० आर० खान आफरीदी के निर्देशन में पी०एचडी० की उपाधि प्राप्त की। उनके शोध का शीर्षक था-दामोदर स्वरूप विद्रोही : व्यक्तित्व एवं कृतित्व (वीर रस, राष्ट्रीयता तथा मंच के विशेष संदर्भ में)[10]।
पुरस्कार सम्मान
[संपादित करें]विद्रोही जी को अपने सम्पूर्ण जीवन काल में 200 से अधिक नागरिक अभिनन्दन, अलंकरण, पुरस्कार तथा सम्मान प्राप्त हुए। उनमें से कुछ प्रमुख पुरस्कार व सम्मान इस प्रकार हैं:
- साहित्य भूषण, उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, लखनऊ
- निराला पुरस्कार, रायसेन-मध्य प्रदेश
- सुमन पुरस्कार, उन्नाव
- भगवती चरण वर्मा पुरस्कार, सफीपुर उत्तर प्रदेश
- राजर्षि पुरुषोत्तमदास टण्डन जन्मशती सम्मान, राष्ट्र्भाषा हिन्दी प्रचार समिति,मुरादाबाद
- शान्ति कुंज रामाश्रम का राजहंस सम्मान
- जनपद रत्न, अटल बिहारी वाजपेयी जन्म-दिवस समारोह समिति, शाहजहाँपुर
विद्रोही स्मृति सम्मान
[संपादित करें]दो अक्टूबर गान्धी जी और पूर्व प्रधानमन्त्री लाल बहादुर शास्त्री का जन्म दिन होने के साथ विद्रोही जी का भी जन्म दिन है। उनके बेटे विवेक गुप्ता ने उनकी याद में विद्रोही स्मृति न्यास का गठन कर प्रति वर्ष दो अक्टूबर को शाहजहाँपुर के गान्धी भवन में समारोह करके रुहेलखण्ड विश्वविद्यालय से एम०ए० (हिन्दी) में सर्वोच्च अंक प्राप्त करने वाले विद्यार्थी अथवा अखिल भारतीय कवि सम्मेलन का आयोजन करके किसी एक कवि को विद्रोही स्मृति सम्मान[11] देने का निर्णय लिया।
अब तक यह सम्मान निम्न लोगों को दिया जा चुका है:
- वर्ष 2009 श्वेता गोस्वामी (बरेली), (विद्यार्थी)
- वर्ष 2010 उदय प्रताप सिंह (इटावा), (कवि}
- वर्ष 2011 रामेन्द्र मोहन त्रिपाठी (आगरा), (कवि)।
सन्दर्भ
[संपादित करें]- ↑ [1]
- ↑ [2]
- ↑ दीवार के साये में पृष्ठ ६९
- ↑ त्रिधारा पृष्ठ ४५
- ↑ श्री विद्रोही अभिनन्दन ग्रन्थ पृष्ठ ५
- ↑ श्री विद्रोही अभिनन्दन ग्रन्थ पृष्ठ ३
- ↑ कलमकारों की दृष्टि में विद्रोही जी पृष्ठ ३
- ↑ कलमकारों की दृष्टि में विद्रोही जी पृष्ठ ६५
- ↑ [3][मृत कड़ियाँ]
- ↑ [4][मृत कड़ियाँ]
- ↑ जब तुम्हारे बीच विद्रोही नहीं होगा [मृत कड़ियाँ]
- http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttarpradesh/4_1_7706425.html[मृत कड़ियाँ] राष्ट्र की अस्मिता का शंखनाद हैं विद्रोही की कविताएँ
- https://web.archive.org/web/20121027075813/http://panchjanya.com/arch/2008/7/6/File16.htm गवाक्ष : मौन हुए विद्रोही जी
- http://article.wn.com/view/WNAT986094a84a347d30902d7a8206da605d/ पंचतत्व में विलीन हुई कवि विद्रोही की नश्वर काया
- http://www.amarujala.com/city/Shahjehanpur/Shahjehanpur-6231-123.html[मृत कड़ियाँ] जब तुम्हारे बीच विद्रोही नहीं होगा
- http://202.86.7.61/news/local/uttarpradesh/4_1_7928926_1.html[मृत कड़ियाँ] आदर्श को पीएचडी
- http://www.livehindustan.com/news/up/analysis/article1-up-election-2012-349-349-211464.html हिसाब मांग रही शहीदों की सरजमीं
- रतीश गर्ग श्री विद्रोही अभिनन्दन ग्रन्थ अभिनन्दन समारोह समिति शाहजहाँपुर २४२००१
- दामोदर स्वरूप 'विद्रोही' दिल्ली की गद्दी सावधान १९९८ मेधा बुक्स नवीन शाहदरा नई दिल्ली ११००३२ ISBN 81-87110-17-1.
- दामोदर स्वरूप 'विद्रोही' दीवार के साये में (आत्मकथा) २००५ गान्धी पुस्तकालय शाहजहाँपुर
- अरविन्द मिश्र कलमकारों की दृष्टि में विद्रोही जी प्रिंटर्स हाउस बहादुरगंज शाहजहाँपुर २४२००१
- दामोदर स्वरूप 'विद्रोही' त्रिधारा 2002 मेधा बुक्स, एक्स-11 नवीन शाहदरा दिल्ली 110032 ISBN 81-87110-78-3