सिद्धासन
सिद्धासन
नाम से ही ज्ञात होता है कि यह आसन सभी सिद्धियों को प्रदान करने वाला है, इसलिए इसे सिद्धासन कहा जाता है। यमों में ब्रह्मचर्य श्रेष्ठ है, नियमों में शौच श्रेष्ठ है वैसे आसनों में सिद्धासन श्रेष्ठ है।
स्वामी स्वात्माराम जी के अनुसार, "जिस प्रकार केवल कुम्भक के समय कोई कुम्भक नहीं, खेचरी मुद्रा के समान कोई मुद्रा नहीं, नाद के समय कोई लय नहीं; उसी प्रकार सिद्धासन के समान कोई दूसरा आसन नहीं है।
प्रथम विधि -
सर्वप्रथम दण्डासन में बैठ जाएँ। बाएँ पैर को मोड़कर उसकी एड़ी को गुदा और उपस्थेन्द्रिय के बीच इस प्रकार से दबाकर रखें कि बाएं पैर का तलुआ दाएँ पैर की जाँघ को स्पर्श करे। इसी प्रकार दाएँ पैर को मोड़कर उसकी एड़ी को उपस्थेन्द्रिय (शिशन) के ऊपर इस प्रकार दबाकर रखें। अब दोनों हाथ ज्ञान मुद्रा में रखें तथा जालन्धर बन्ध लगाएँ और अपनी दृष्टि को भ्रूमध्य टिकाएँ। इसी का नाम सिद्धासन है।
दूसरी विधि -
सर्वप्रथम दण्डासन में बैठ जाएँ तत्पश्चात बाएँ पैर को मोड़कर उसकी एड़ी को शिशन के ऊपर रखें तथा दाएँ पैर को मोड़कर उसकी एड़ी को बाएं पैर की एड़ी के ठीक ऊपर रखें। यह भी सिद्धासन कहलाता है।
सिद्धासन के लाभ -
यह सभी आसनों में महत्वपूर्ण तथा सभी प्रकार की सिद्धियों को प्रदान करने वाला एकमात्र आसन है। इस आसन के अभ्यास से साधक का मन विषय वासना से मुक्त हो जाता है। इसके अभ्यास से निष्पत्ति अवस्था, समाधि की अवस्था प्राप्त होती है। इसके अभ्यास से स्वत: ही तीनों बंध (जालंधर, मूलबन्ध तथा उड्डीयन बंध) लग जाते हैं। सिद्धासन के अभ्यास से शरीर की समस्त नाड़ियों का शुद्धिकरण होता है। प्राणतत्त्व स्वाभाविकतया ऊर्ध्वगति को प्राप्त होता है। फलतः मन एकाग्र होता है। विचार पवित्र बनते हैं। ब्रह्मचर्य-पालन में यह आसन विशेष रूप से सहायक होता है।
अन्य लाभ-
पाचनक्रिया नियमित होती है। श्वास के रोग, हृदय रोग, जीर्णज्वर, अजीर्ण, अतिसार, शुक्रदोष आदि दूर होते हैं। मंदाग्नि, मरोड़ा, संग्रहणी, वातविकार, क्षय, दमा, मधुप्रमेह, प्लीहा की वृद्धि आदि अनेक रोगों का प्रशमन होता है। पद्मासन के अभ्यास से जो रोग दूर होते हैं वे सिद्धासन के अभ्यास से भी दूर होते हैं।
सावधानी-
गृहस्थ लोगों को इस आसन का अभ्यास लम्बे समय तक नहीं करना चाहिए। सिद्धासन को बलपूर्वक नहीं करनी चाहिए। साइटिका, स्लिप डिस्क वाले व्यक्तियों को भी इसका अभ्यास नहीं करना चाहिए। घुटने में दर्द हो, जोड़ो का दर्द हो या कमर दर्द की शिकायत हो, उन्हें भी इसका अभ्यास नहीं करना चाहिए। गुदा रोगों जैसे बवासीर आदि से पीड़ित रोगी भी इसका अभ्यास न करें।